अमरूद की खेती
परिचय : अमरूद को अंग्रेजी में ग्वावा कहते हैं। वानस्पतिक नाम सीडियम ग्वायवा, प्रजाति सीडियम, जाति ग्वायवा, कुल मिटसी)। वैज्ञानिकों का विचार है कि अमरूद की उत्पति अमरीका के उष्ण कटिबंधीय भाग तथा वेस्ट इंडीज़ से हुई है। भारत की जलवायु में यह इतना घुल मिल गया है कि इसकी खेती यहाँ अत्यंत सफलतापूर्वक की जाती है।
अमरूद एक लोकप्रिय फल है जो खाने में स्वादिष्ट होता है और इसकी खेती एक लाभदायक व्यवसाय के रूप में भी जानी जाती है। अमरूद की खेती धार्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण होती है, जिसे भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, स्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य क्षेत्रों में उत्पादित किया जाता है।
अमरूद की खेती के लिए सबसे अच्छे जलवायु में गर्म और नमी भरा तटीय क्षेत्र होता है। यह फल शुरूआती मौसम में जमीन में रोपण किया जाता है जो समीचीनता से दूर रखी जानी चाहिए। अमरूद के पेड़ को उचित खेती के लिए प्रति वर्ष तैयार किया जाना चाहिए। इसके लिए अधिकतम समय अप्रैल-मई होता है।
अमरूद की खेती के लिए उत्पादकों को उचित जल आपूर्ति की आवश्यकता होती है। उचित जल संचय और सिंचाई के लिए भी सुनिश्चित करना चाहिए। इसके अलावा, रोपण से पहले जमीन में उर्वरक और खाद का उपयोग करना चाहिए।
भूमिका : अमरूद की खेती भारत में एक मुख्य खेती कार्य है जो अन्य फलों की खेती से अलग होता है। यह फल एक महत्वपूर्ण खाद्य फल है जो उष्णकटिबंधीय वनस्पतियों के रूप में माना जाता है। इसके साथ ही यह फल औषधीय गुणों की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होता है।
अमरूद की खेती को एक लाभदायक व्यवसाय के रूप में देखा जा सकता है। इससे किसानों को न केवल अधिक आय मिलती है बल्कि यह एक पूरी तरह से स्थानों के समानता और संरचनात्मक विकास का भी जरिया बनता है।
अमरूद की खेती के लिए उचित जलवायु, धातु युक्त मिट्टी, और अन्य उपयुक्त मापदंडों की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, उचित खाद और पानी की आपूर्ति की सुनिश्चित करना आवश्यक होता है। अमरूद के पेड़ विशेष रूप से शुरुआती वर्षों में संबंधित बीमारियों और कीटों से प्रभावित हो सकते हैं, इसलिए उचित समय पर उपचार करना चाहिए।
जलवायु : अमरूद की खेती के लिए उचित जलवायु उष्णकटिबंधीय और उमसदी जलवायु होना आवश्यक होता है। इस फल के वृद्धि के लिए, 15-30 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है और इसके लिए 1000-1500 मिमी वर्षा आवश्यक होती है।
अमरूद की खेती के लिए उचित तापमान और उच्च वर्षा आवश्यक होते हैं क्योंकि यह एक उष्णकटिबंधीय वनस्पति है जो उष्णकटिबंधीय और उमसदी जलवायु में ही अच्छी तरह से उगता है। उचित जलवायु में अमरूद के पेड़ अधिक फल देते हैं और फल की गुणवत्ता भी बढ़ती है।
इसलिए, अमरूद की खेती के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले क्षेत्र की जलवायु का समीक्षण करना बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह फल सूखे वाली जलवायु को बहुत अधिक झेल सकता है और उमसदी जलवायु में उगाया जाता है, लेकिन उत्तरी और पूर्वोत्तर भारत जैसे कुछ अंचलों में यह फल उगाया नहीं जा सकता।
भूमि : अमरूद की खेती के लिए उपयुक्त भूमि भिन्न हो सकती है, लेकिन इस फल की उन्नत खेती के लिए अधिकतर मिट्टी की उपयुक्तता उष्णकटिबंधीय एवं उमसदी जलवायु में उगाने के लिए होती है।
अमरूद की खेती के लिए उच्च वातावरण और संक्रमणों से रक्षा करने की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, यह फल उच्च मात्रा में खाद और पानी की आवश्यकता रखता है। इसलिए, उचित फसल विकास के लिए मिट्टी की उपयुक्तता, उचित पानी प्रबंधन तथा खाद की उपलब्धता की जांच की जानी चाहिए।
अमरूद की खेती के लिए सबसे अच्छी मिट्टी तोरीया मिट्टी होती है।
प्रजातियां : अमरूद की खेती के लिए विभिन्न प्रजातियां होती हैं जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
- सफेद अमरूद (White guava) : यह प्रजाति अमरूद सबसे आम और व्यापक रूप से उपलब्ध होती है। इसका फल सफेद होता है और यह मीठे स्वाद वाला होता है।
- लाल अमरूद (Red guava): यह प्रजाति अमरूद लाल या पीले फलों वाली होती है जो मीठा होता है।
- पिंक अमरूद (Pink guava): यह प्रजाति अमरूद लाल फलों वाली होती है जो मीठे स्वाद वाली होती है।
- थाई अमरूद (Thai guava): यह प्रजाति अमरूद छोटे फलों वाली होती है जो आमतौर पर सफेद या हल्के पीले रंग में होती है।
- बीज मुक्त अमरूद (Seedless guava): यह प्रजाति अमरूद बीजों से मुक्त होती है और इसका फल बहुत ही स्वादिष्ट होता है।
यहां दी गई प्रजातियां कुछ अधिक उपलब्ध नहीं हो सकती हैं और इसके अलावा भी कुछ और प्रजातियां हो सकती हैं जो विभिन्न रंगों, स्वादों, आकारों और विशेषताओं के साथ उपलब्ध होती हैं।
पौध-रोपण : अमरूद की खेती के लिए उचित पौधे का चयन बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसके लिए अनुकूल जलवायु और मिट्टी का चयन करना जरूरी होता है। निम्नलिखित चरणों को अपनाकर आप अमरूद के पौधे को रोपण कर सकते हैं:
- खेत का चयन करें: अमरूद के लिए उपयुक्त खेत का चयन करें जो उचित सूखे दिनों में अधिक जल न रखता हो। अमरूद के लिए अधिकतर मिट्टी लोमड़ी मिट्टी या मिट्टी के बारीक अंशों से बनी होती है।
- पौधे का चयन करें: स्वस्थ और उचित गुणवत्ता वाले अमरूद के पौधे का चयन करें। उचित पौधे की गहन रंगता होनी चाहिए और पत्तों की स्थिति भी अच्छी होनी चाहिए।
- पौधों की दूरी तय करें: अमरूद के पौधों की दूरी तय करते समय ध्यान दें कि दो पौधों के बीच कम से कम तीन मीटर की दूरी होनी चाहिए।
- खेत को तैयार करें: खेत को अच्छी तरह से तैयार करें। उचित खेत की तैयारी के लिए खेत में दो-तीन महीने पहले ही खेत की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। खेत को अच्छी तरह से तैयार करने के लिए निम्नलिखित कार्यों को करें:
- खेत में खाद डालें: खेत में खाद डालने से उसमें मिट्टी का उपयोग ज्यादा होता है और पौधों के लिए उपयुक्त पोषण उपलब्ध होता है।
- खेत को प्लो करें: खेत को प्लो करने से मिट्टी में वायु आती है और यह उचित तरह से फिर से तैयार हो जाती है।
- खेत में बारिश का पानी दें: खेत में बारिश का पानी देने से मिट्टी की नमी बढ़ती है और पौधों के लिए उपयुक्त माहौल बनता है।
- खेत में जीवाणुओं को मिटाएं: खेत में जीवाणुओं को मिटाना जरूरी होता है क्योंकि वे पौधों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
- खेत में विशेष प्रकार की मिट्टी डालें: अमरूद की खेती के लिए उचित मिट्टी चयन करना जरूरी होता है।
सिंचाई : अमरूद की खेती के लिए सिंचाई एक महत्वपूर्ण कार्य है, क्योंकि यह पौधों के विकास और उन्हें उचित मात्रा में पानी प्रदान करता है। निम्नलिखित विवरण अमरूद की सिंचाई से संबंधित हैं:
सिंचाई की आवश्यकता : अमरूद की खेती में सिंचाई की आवश्यकता पौधों के विकास के अनुसार भिन्न होती है। सामान्य रूप से, पौधों को सप्ताह में एक या दो बार पानी देना उचित माना जाता है।
सिंचाई का विधान: सिंचाई का विधान स्थानीय संयोजनों और जल संसाधनों के अनुसार भिन्न होता है। इसलिए, इसे उचित तरीके से करना चाहिए ताकि पौधों को उपयुक्त मात्रा में पानी मिल सके।
खर-पतवार एवं कीट नियंत्रण : अमरूद एक लोकप्रिय फल है जो भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, सीएफ एवं दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य क्षेत्रों में खेती किया जाता है। यह एक आसानी से उपलब्ध फल होता है जो गर्मी और जलवायु के लिए अनुकूल होता है। अमरूद के पौधे स्थायी होते हैं और उनके फल दो से तीन साल तक उत्पादक होते हैं।
खेती के लिए, सबसे पहले आपको एक उचित जमीन चुनना होगा जो अमरूद के लिए उपयुक्त होता है। अमरूद की खेती के लिए गहरी और अच्छी निर्धारित जलवायु वाली मिट्टी अच्छी होती है।
कीट : कीट उन जीवों को कहते हैं जो फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। ये जीव एक से अधिक प्रकार के होते हैं जैसे कि कीटाणु, कीड़े, फुटकरी, मक्खी, कौए, बच्चड़े, चींटियों आदि। ये कीट खेती के फसलों में आक्रमण करके उन्हें नष्ट कर देते हैं या उनके विकास और उत्पादकता को कम कर देते हैं।
अमरूद कीटों की नियंत्रण के लिए कुछ उपाय हो सकते हैं जैसे:
- नींबू का रस और अदरक का रस स्प्रेय करना: अमरूद के पेड़ों को नींबू का रस या अदरक का रस स्प्रेय करना कीटाणुओं से लड़ाई करने में मदद कर सकता है।
- नुकसान पहुंचाने वाले कीटों के लिए कीटनाशक दवा का उपयोग करें।
- पौधों को नियमित रूप से खाद दें ताकि वे स्वस्थ रहें और कीटाणुओं से लड़ने की ताकत रखें।
- फसल को नियमित रूप से चेक करें और नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को निकालें।
खर-पतवार के लिए, जब फल पकने लगते हैं तो उन्हें पका हुआ अमरूद कहा जाता है। इस दौरान, फल अधिकतम गुणवत्ता तक पहुंचते हैं और उनका स्वाद मीठा होता है। इस दौरान, अमरूद पौधों को प्रत्येक सप्ताह में तरल खाद देना उपयुक्त होता है। फलों को टूटने से रोकने के लिए एक पर्याप्त समर्थ स्ट्रक्चर का होना भी आवश्यक होता है।
अमरूद कीटों द्वारा प्रभावित होता है जो उनके पत्तों, फलों और डंठल पर प्रतिक्रिया दिखाते हैं। यहां कुछ आम कीट हैं जो अमरूद की खेती को प्रभावित करते हैं:
- अमरूद छिद्रक माशी: यह एक छोटी सी माशी होती है जो अमरूद के छिद्रों में प्रवेश करती है और फल को खराब करती है। इसके लिए अमरूद के पौधों पर इमिडाक्लोप्रिड (Imidacloprid) जैसे कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है।
- अमरूद सफेद पेड़ी: यह कीट अमरूद की पत्तियों पर पैदा होती है जो फलों को क्षति पहुंचाती है। इसके लिए, प्य्रेथ्रॉइड (Pyrethroid) जैसे कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है।
- फलबोर्न काले छोटे कीट: ये कीट अमरूद के फलों को खराब करते हैं। इसके लिए, अमरूद के पौधों पर दो-तीन हफ्ते के अंतराल से स्प्रे कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है।
- अमरूद थर्माइट: ये कीट अमरूद के पौधों को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उन्हें मरने के लिए ले जाते हैं
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रोग नियंत्रण : अमरूद कीटों के साथ साथ, कुछ रोग भी अमरूद की खेती को प्रभावित कर सकते हैं। निम्नलिखित हैं कुछ रोग और उनके नियंत्रण के बारे में जानकारी:
- अमरूद का बीमारी बैक्टीरियल ब्लाइट: यह बीमारी अमरूद के पेड़ों के तने और पत्तियों पर दाने जैसे छोटे दाग बनाती है। इसके लिए अमरूद पेड़ों के रोग प्रतिरोधक विकास के लिए कलिफोर्निया से प्राप्त शीतल पौधों का उपयोग किया जा सकता है।
- अमरूद का रोग फायदी फंगसाइड: यह रोग अमरूद के पत्तों पर सफेद दाग बनाता है जो फलों को खराब करते हैं। इसके लिए, अमरूद के पेड़ों पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (Copper oxychloride) जैसे फंगिसाइड का उपयोग किया जा सकता है।
- अमरूद का रोग अंगुलीमोज: यह रोग अमरूद के पत्तों के किनारों पर काले धब्बे बनाता है और उन्हें खराब करता है। इसके लिए, अमरूद के पौधों पर मैनकोजेब (Mancozeb) जैसे फंगिसाइड का उपयोग किया जा सकता है।
- करोद का रोग रक्त वाम: यह रोग अमरूद के पत्तों के ऊपर लाल रंग के छोटे दाग बनाता है जो बड़े होकर खूनी निकलते हैं। इसके लिए, अमरूद के पेड़ों को सूखा करना जरूरी होता है और उन्हें बारिश से बचाने के लिए आवेश कवर (Mulching Cover) का उपयोग किया जा सकता है।
- अमरूद का रोग वायरसी रोलींग समुद्री तट वायरस: यह रोग अमरूद के पत्तों पर सफेद दाग बनाता है जो उन्हें खराब करते हैं। इसके लिए, अमरूद के पेड़ों को बीज से ही वायरस के लिए संशोधित जीनोम के द्वारा सुरक्षित किया जा सकता है।
इन रोगों से बचने के लिए, समय-समय पर पेड़ों की जांच करनी चाहिए और रोगों के लक्षणों का पता लगाना चाहिए। इसके अलावा, फंगिसाइड या अन्य कीटनाशकों का उपयोग करना चाहिए जब रोगों के लक्षण दिखाई दें। रोगों से बचाव के लिए, स्वस्थ और विकसित अमरूद पौधों का चयन करना भी बहुत महत्वपूर्ण है।
फलों की तुड़ाई और उपज : अमरूद की तुड़ाई उसके पकने फलों के रंग पर निर्भर करती है। अधिकांश अमरूदों का पकना संभवतः जून से सितंबर के बीच होता है। यदि आप फल के पकने का समय जानना चाहते हैं, तो आप अपने स्थान की मौसम जानकारी ले सकते हैं और उसे आधार बनाकर फलों की तुड़ाई का समय तय कर सकते हैं।
अमरूद को तुड़ाई करने से पहले, उसे ध्यान से जांच करें और पूरी तरह से पक जाने की पहचान करें। तुड़ाई के लिए, आप एक छूरा या काटनी का उपयोग कर सकते हैं। फल को आसानी से काटा जा सकता है जब वह पूरी तरह से पक जाता है और थोड़ा नरम हो जाता है।
अमरूद की उपज पेड़ की विविधता और उसकी संपादन तकनीकों पर निर्भर करती है। स्वस्थ अमरूद के पेड़ों से, आप प्रति पेड़ लगभग 50 से 100 किलो तक की उपज प्राप्त कर सकते हैं। यदि आप अमरूद की बगीचा लगाने की योजना बना रहे हैं, तो उचित दूरी के साथ पेड़ लगाएं ताकि पौधों के बीच पर्याप्त जगह रहे।
उचित दूरी के साथ पेड़ लगाने के लिए, आपको अमरूद के पेड़ों की विशिष्ट विविधता और उनकी विशेषताओं को समझना आवश्यक होगा। अमरूद के पेड़ एक दूसरे से कम से कम 6-7 मीटर की दूरी पर लगाए जाने चाहिए ताकि वे पूरी तरह से फैल सकें। आप इस दूरी को आपस में लगभग 3-4 मीटर तक भी बढ़ा सकते हैं जब आप पेड़ लगाने के लिए अधिक जगह उपलब्ध कराते हैं।
अमरूद के पेड़ की उचित फसल नियंत्रण तकनीकें इस प्रकार हो सकती हैं:
- बीजों के स्प्रेयिंग और तैयारी: अमरूद के बीजों को पौधे लगाने से पहले स्प्रेय किया जा सकता है ताकि उनमें कीटाणुओं से बचाया जा सके।
- फसल की देखभाल: अमरूद के पेड़ों को नियमित रूप से नींबू के रस के साथ पानी से स्प्रेय किया जा सकता है, जिससे कीटाणुओं और रोगों से बचा जा सकता है।
- खाद की उपयोग: अमरूद के पेड़ों को नियमित रूप से खाद देने से उनकी उपज में वृद्धि होती है।