ड्रैगन फ्रूट की खेती कैसे करें, पूरी जानकारी, लाभ, किस्में, सिंचाई, जलवायु, मिट्टी और खाद प्रबंधन, बुवाई, तुड़ाई, और बाजार मूल्य, रोग प्रबंधन और वैज्ञानिक विधियाँ

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ड्रैगन फ्रूट की खेती: संपूर्ण जानकारी

ड्रैगन फ्रूट, जिसे पिटाया के नाम से भी जाना जाता है, एक विदेशी फल है जो अपनी विशेषताओं, पोषण संबंधी लाभों और स्वास्थ्य गुणों के कारण बहुत लोकप्रिय हो रहा है। यह पौधा कैक्टस प्रजाति का होता है और इसकी खेती सामान्यतः गर्म, शुष्क और अर्ध-उष्णकटिबंधीय जलवायु में की जाती है। भारत में इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए, कई किसान इसकी खेती की ओर रुचि ले रहे हैं। इस लेख में हम ड्रैगन फ्रूट की खेती से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी विस्तारपूर्वक प्रदान करेंगे।


1. जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएं

जलवायु:

ड्रैगन फ्रूट एक शुष्क और गर्म जलवायु के लिए उपयुक्त है। यह पौधा -2°C से 40°C तक के तापमान को सहन कर सकता है, लेकिन इसके विकास के लिए आदर्श तापमान 20°C से 30°C के बीच होता है। यह पौधा थोड़ी वर्षा वाले क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है, और अधिक नमी इसे नुकसान पहुंचा सकती है।

मिट्टी:

  • ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए बलुई दोमट (Sandy Loam) मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है।
  • इसकी जड़ें गहरी होती हैं, इसलिए मिट्टी की जल निकासी अच्छी होनी चाहिए।
  • मिट्टी का pH स्तर 5.5 से 7.0 के बीच होना चाहिए।
  • लवणीय मिट्टी इसके लिए उपयुक्त नहीं होती है, इसलिए मिट्टी को अच्छी तरह से तैयार करना चाहिए।

2. ड्रैगन फ्रूट की किस्में

ड्रैगन फ्रूट की मुख्य तीन किस्में होती हैं, जिनमें से प्रत्येक में विशेष रंग और स्वाद होते हैं।

किस्म का नाम विशेषता
हायलोसेरियस अंडाटस सफेद गूदा, गुलाबी बाहरी छिलका
हायलोसेरियस पोलिहिज़स लाल गूदा, गुलाबी बाहरी छिलका
सेलिनसिरियस मेगालांथस सफेद गूदा, पीला बाहरी छिलका

3. पौध तैयार करने की विधि

ड्रैगन फ्रूट की पौध तैयार करने के लिए दो विधियाँ प्रचलित हैं:

बीज विधि:

  • बीज से पौधे तैयार करने में लगभग 3-4 वर्ष लगते हैं।
  • बीज से उगाई गई फसल का उत्पादन कम होता है और पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है।

कटिंग विधि:

  • ड्रैगन फ्रूट की खेती में कटिंग विधि सबसे अधिक प्रचलित है।
  • कटिंग से पौध तैयार करने में पौधे जल्दी बढ़ते हैं और लगभग 1.5-2 वर्षों में फल देना शुरू कर देते हैं।
  • कटिंग 30-50 सेमी लम्बी होनी चाहिए।

4. पौध रोपण का समय और तरीका

रोपण का सही समय:

  • ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए मार्च से जुलाई का समय उपयुक्त होता है।

रोपण की दूरी:

  • ड्रैगन फ्रूट के पौधों को 2×2 मीटर की दूरी पर लगाया जा सकता है।
  • इस तरह प्रति एकड़ में लगभग 1700-1800 पौधे लगाए जा सकते हैं।

गड्ढे की तैयारी:

  • प्रत्येक पौधे के लिए 40x40x40 सेमी का गड्ढा बनाना चाहिए।
  • गड्ढों में गोबर की खाद और मिट्टी का मिश्रण भरकर 10-15 दिनों के लिए छोड़ देना चाहिए।

5. सहारे का प्रबंध (ट्रेलिसिंग)

ड्रैगन फ्रूट एक बेल के समान होता है, इसलिए इसे सहारे की आवश्यकता होती है। खेती के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण चरण है क्योंकि सहारे के बिना पौधे ठीक से नहीं बढ़ पाते हैं और फलों का उत्पादन कम हो जाता है।

  • प्रत्येक पौधे के पास एक मजबूत खंभा लगाएं जो लगभग 6-7 फीट ऊँचा हो।
  • खंभे पर अंगूठी या फ्रेम बांधकर ड्रैगन फ्रूट के पौधों को सहारा दें ताकि वे ऊपर की ओर बढ़ सकें।

6. सिंचाई प्रबंधन

ड्रैगन फ्रूट के पौधों को उचित सिंचाई की आवश्यकता होती है, लेकिन अत्यधिक पानी इनकी जड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है।

मौसम सिंचाई की आवश्यकता
मानसून अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती
सर्दी 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें
गर्मी हर 7-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें

नोट: ड्रिप सिंचाई प्रणाली ड्रैगन फ्रूट की खेती में अधिक प्रभावी होती है, जिससे पानी की बचत होती है और पौधे अच्छे से बढ़ते हैं।


7. खाद और उर्वरक प्रबंधन

ड्रैगन फ्रूट की अच्छी गुणवत्ता और उत्पादन के लिए उचित खाद और उर्वरक का उपयोग करना आवश्यक है।

उम्र (वर्ष) गोबर की खाद (किलो) नाइट्रोजन (ग्राम) फास्फोरस (ग्राम) पोटाश (ग्राम)
1-2 5-8 50-70 40-60 30-50
3-4 10-12 80-100 60-80 50-70
5 और उससे अधिक 15-20 120-150 100-120 80-100
  • जैविक खाद: वर्मी कंपोस्ट और नीम की खली का भी उपयोग करें ताकि मिट्टी की उर्वरता बढ़े और पौधे स्वास्थ्य रहें।

8. रोग और कीट प्रबंधन

ड्रैगन फ्रूट की खेती में रोग और कीट नियंत्रण पर भी ध्यान देना आवश्यक है।

  • मुख्य रोग:
    • फंगल रोग: इसके कारण पौधों पर काले धब्बे पड़ जाते हैं। इसके नियंत्रण के लिए कवकनाशी (फंफूंदनाशक) का छिड़काव करें।
    • रूट रॉट: यह रोग अत्यधिक नमी से होता है। मिट्टी की जल निकासी को सुधारें और उचित सिंचाई प्रबंधन करें।
  • मुख्य कीट:
    • एफिड्स: ये कीट पत्तियों का रस चूसते हैं, जिससे पौधों की वृद्धि रुक जाती है। इसके नियंत्रण के लिए नीम का तेल या जैविक कीटनाशकों का उपयोग करें।
    • स्केल कीट: यह पौधों की शाखाओं पर हमला करता है। इसके नियंत्रण के लिए तेल आधारित कीटनाशकों का उपयोग करें।

9. तुड़ाई और उपज

  • तुड़ाई का सही समय: ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगभग 1.5-2 वर्षों में फल देने लगते हैं। एक बार फल बनने के बाद, यह हर वर्ष फल देता है।
  • उपज: एक स्वस्थ पौधा प्रति वर्ष 20-30 फल दे सकता है। प्रति एकड़ में लगभग 8-10 टन ड्रैगन फ्रूट का उत्पादन किया जा सकता है।

10. विपणन और आर्थिक लाभ

ड्रैगन फ्रूट की बाजार में अच्छी मांग है, इसलिए इसकी खेती से किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है।

  • बाजार मूल्य: ड्रैगन फ्रूट का बाजार मूल्य इसके गुणवत्ता और मौसम के आधार पर बदलता रहता है। सामान्यतः प्रति किलोग्राम 100-250 रुपये के बीच इसका मूल्य होता है।
  • प्रसंस्करण उद्योग: ड्रैगन फ्रूट से कई प्रकार के प्रसंस्कृत उत्पाद जैसे जूस, जैम, और आइसक्रीम बनाए जाते हैं, जिससे अतिरिक्त आय का स्रोत बन सकता है।

11. लाभ और संभावित चुनौतियाँ

लाभ:

  • ड्रैगन फ्रूट की खेती में कम पानी की आवश्यकता होती है, इसलिए यह शुष्क क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है।
  • यह फसल जल्दी फल देती है और इसकी खेती से प्रति वर्ष अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है।
  • फलों का बाजार मूल्य अच्छा होता है, और इसका प्रसंस्करण भी लाभकारी हो सकता है।

चुनौतियाँ:

  • अत्यधिक नमी से जड़ रॉट रोग का खतरा होता है।
  • पौधों के लिए सहारे का उचित प्रबंध जरूरी होता है, जिससे प्रारंभिक लागत बढ़ सकती है।
  • उचित विपणन के अभाव में किसानों को फलों का सही मूल्य नहीं मिल पाता।

12. अतिरिक्त सुझाव

ड्रैगन फ्रूट की खेती को सफल बनाने के लिए निम्नलिखित सुझावों पर ध्यान देना चाहिए:

  • प्रूनिंग: नियमित रूप से शाखाओं की छंटाई करें ताकि पौधे का विकास बेहतर हो और फलों की गुणवत्ता में वृद्धि हो।
  • सहारा प्रबंधन: पौधों के सहारे के लिए मजबूत खंभों और फ्रेम का उपयोग करें।
  • विपणन योजना: फसल की तुड़ाई के समय बाजार में संपर्क करें ताकि फलों का सही मूल्य प्राप्त हो सके।

इस प्रकार ड्रैगन फ्रूट की खेती में अच्छी योजना, उचित प्रबंधन और वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करके किसानों को अधिक उपज और लाभ मिल सकता है। इसकी खेती से न केवल किसान आर्थिक रूप से सशक्त हो सकते हैं, बल्कि यह एक निर्यात-योग्य फसल भी है, जिससे देश की आर्थिक स्थिति में सुधार लाया जा सकता है।

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