अमरूद की खेती
परिचय : अमरूद को अंग्रेजी में ग्वावा कहते हैं। वानस्पतिक नाम सीडियम ग्वायवा, प्रजाति सीडियम, जाति ग्वायवा, कुल मिटसी)। वैज्ञानिकों का विचार है कि अमरूद की उत्पति अमरीका के उष्ण कटिबंधीय भाग तथा वेस्ट इंडीज़ से हुई है। भारत की जलवायु में यह इतना घुल मिल गया है कि इसकी खेती यहाँ अत्यंत सफलतापूर्वक की जाती है।
अमरूद एक लोकप्रिय फल है जो खाने में स्वादिष्ट होता है और इसकी खेती एक लाभदायक व्यवसाय के रूप में भी जानी जाती है। अमरूद की खेती धार्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण होती है, जिसे भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, स्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य क्षेत्रों में उत्पादित किया जाता है।
अमरूद की खेती के लिए सबसे अच्छे जलवायु में गर्म और नमी भरा तटीय क्षेत्र होता है। यह फल शुरूआती मौसम में जमीन में रोपण किया जाता है जो समीचीनता से दूर रखी जानी चाहिए। अमरूद के पेड़ को उचित खेती के लिए प्रति वर्ष तैयार किया जाना चाहिए। इसके लिए अधिकतम समय अप्रैल-मई होता है।
अमरूद की खेती के लिए उत्पादकों को उचित जल आपूर्ति की आवश्यकता होती है। उचित जल संचय और सिंचाई के लिए भी सुनिश्चित करना चाहिए। इसके अलावा, रोपण से पहले जमीन में उर्वरक और खाद का उपयोग करना चाहिए।
भूमिका : अमरूद की खेती भारत में एक मुख्य खेती कार्य है जो अन्य फलों की खेती से अलग होता है। यह फल एक महत्वपूर्ण खाद्य फल है जो उष्णकटिबंधीय वनस्पतियों के रूप में माना जाता है। इसके साथ ही यह फल औषधीय गुणों की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होता है।
अमरूद की खेती को एक लाभदायक व्यवसाय के रूप में देखा जा सकता है। इससे किसानों को न केवल अधिक आय मिलती है बल्कि यह एक पूरी तरह से स्थानों के समानता और संरचनात्मक विकास का भी जरिया बनता है।
अमरूद की खेती के लिए उचित जलवायु, धातु युक्त मिट्टी, और अन्य उपयुक्त मापदंडों की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, उचित खाद और पानी की आपूर्ति की सुनिश्चित करना आवश्यक होता है। अमरूद के पेड़ विशेष रूप से शुरुआती वर्षों में संबंधित बीमारियों और कीटों से प्रभावित हो सकते हैं, इसलिए उचित समय पर उपचार करना चाहिए।
जलवायु : अमरूद की खेती के लिए उचित जलवायु उष्णकटिबंधीय और उमसदी जलवायु होना आवश्यक होता है। इस फल के वृद्धि के लिए, 15-30 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है और इसके लिए 1000-1500 मिमी वर्षा आवश्यक होती है।
अमरूद की खेती के लिए उचित तापमान और उच्च वर्षा आवश्यक होते हैं क्योंकि यह एक उष्णकटिबंधीय वनस्पति है जो उष्णकटिबंधीय और उमसदी जलवायु में ही अच्छी तरह से उगता है। उचित जलवायु में अमरूद के पेड़ अधिक फल देते हैं और फल की गुणवत्ता भी बढ़ती है।
इसलिए, अमरूद की खेती के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले क्षेत्र की जलवायु का समीक्षण करना बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह फल सूखे वाली जलवायु को बहुत अधिक झेल सकता है और उमसदी जलवायु में उगाया जाता है, लेकिन उत्तरी और पूर्वोत्तर भारत जैसे कुछ अंचलों में यह फल उगाया नहीं जा सकता।
भूमि : अमरूद की खेती के लिए उपयुक्त भूमि भिन्न हो सकती है, लेकिन इस फल की उन्नत खेती के लिए अधिकतर मिट्टी की उपयुक्तता उष्णकटिबंधीय एवं उमसदी जलवायु में उगाने के लिए होती है।
अमरूद की खेती के लिए उच्च वातावरण और संक्रमणों से रक्षा करने की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, यह फल उच्च मात्रा में खाद और पानी की आवश्यकता रखता है। इसलिए, उचित फसल विकास के लिए मिट्टी की उपयुक्तता, उचित पानी प्रबंधन तथा खाद की उपलब्धता की जांच की जानी चाहिए।
अमरूद की खेती के लिए सबसे अच्छी मिट्टी तोरीया मिट्टी होती है।
प्रजातियां : अमरूद की खेती के लिए विभिन्न प्रजातियां होती हैं जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
- सफेद अमरूद (White guava) : यह प्रजाति अमरूद सबसे आम और व्यापक रूप से उपलब्ध होती है। इसका फल सफेद होता है और यह मीठे स्वाद वाला होता है।
- लाल अमरूद (Red guava): यह प्रजाति अमरूद लाल या पीले फलों वाली होती है जो मीठा होता है।
- पिंक अमरूद (Pink guava): यह प्रजाति अमरूद लाल फलों वाली होती है जो मीठे स्वाद वाली होती है।
- थाई अमरूद (Thai guava): यह प्रजाति अमरूद छोटे फलों वाली होती है जो आमतौर पर सफेद या हल्के पीले रंग में होती है।
- बीज मुक्त अमरूद (Seedless guava): यह प्रजाति अमरूद बीजों से मुक्त होती है और इसका फल बहुत ही स्वादिष्ट होता है।
यहां दी गई प्रजातियां कुछ अधिक उपलब्ध नहीं हो सकती हैं और इसके अलावा भी कुछ और प्रजातियां हो सकती हैं जो विभिन्न रंगों, स्वादों, आकारों और विशेषताओं के साथ उपलब्ध होती हैं।
पौध-रोपण : अमरूद की खेती के लिए उचित पौधे का चयन बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसके लिए अनुकूल जलवायु और मिट्टी का चयन करना जरूरी होता है। निम्नलिखित चरणों को अपनाकर आप अमरूद के पौधे को रोपण कर सकते हैं:
- खेत का चयन करें: अमरूद के लिए उपयुक्त खेत का चयन करें जो उचित सूखे दिनों में अधिक जल न रखता हो। अमरूद के लिए अधिकतर मिट्टी लोमड़ी मिट्टी या मिट्टी के बारीक अंशों से बनी होती है।
- पौधे का चयन करें: स्वस्थ और उचित गुणवत्ता वाले अमरूद के पौधे का चयन करें। उचित पौधे की गहन रंगता होनी चाहिए और पत्तों की स्थिति भी अच्छी होनी चाहिए।
- पौधों की दूरी तय करें: अमरूद के पौधों की दूरी तय करते समय ध्यान दें कि दो पौधों के बीच कम से कम तीन मीटर की दूरी होनी चाहिए।
- खेत को तैयार करें: खेत को अच्छी तरह से तैयार करें। उचित खेत की तैयारी के लिए खेत में दो-तीन महीने पहले ही खेत की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। खेत को अच्छी तरह से तैयार करने के लिए निम्नलिखित कार्यों को करें:
- खेत में खाद डालें: खेत में खाद डालने से उसमें मिट्टी का उपयोग ज्यादा होता है और पौधों के लिए उपयुक्त पोषण उपलब्ध होता है।
- खेत को प्लो करें: खेत को प्लो करने से मिट्टी में वायु आती है और यह उचित तरह से फिर से तैयार हो जाती है।
- खेत में बारिश का पानी दें: खेत में बारिश का पानी देने से मिट्टी की नमी बढ़ती है और पौधों के लिए उपयुक्त माहौल बनता है।
- खेत में जीवाणुओं को मिटाएं: खेत में जीवाणुओं को मिटाना जरूरी होता है क्योंकि वे पौधों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
- खेत में विशेष प्रकार की मिट्टी डालें: अमरूद की खेती के लिए उचित मिट्टी चयन करना जरूरी होता है।
सिंचाई : अमरूद की खेती के लिए सिंचाई एक महत्वपूर्ण कार्य है, क्योंकि यह पौधों के विकास और उन्हें उचित मात्रा में पानी प्रदान करता है। निम्नलिखित विवरण अमरूद की सिंचाई से संबंधित हैं:
सिंचाई की आवश्यकता : अमरूद की खेती में सिंचाई की आवश्यकता पौधों के विकास के अनुसार भिन्न होती है। सामान्य रूप से, पौधों को सप्ताह में एक या दो बार पानी देना उचित माना जाता है।
सिंचाई का विधान: सिंचाई का विधान स्थानीय संयोजनों और जल संसाधनों के अनुसार भिन्न होता है। इसलिए, इसे उचित तरीके से करना चाहिए ताकि पौधों को उपयुक्त मात्रा में पानी मिल सके।
खर-पतवार एवं कीट नियंत्रण : अमरूद एक लोकप्रिय फल है जो भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, सीएफ एवं दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य क्षेत्रों में खेती किया जाता है। यह एक आसानी से उपलब्ध फल होता है जो गर्मी और जलवायु के लिए अनुकूल होता है। अमरूद के पौधे स्थायी होते हैं और उनके फल दो से तीन साल तक उत्पादक होते हैं।
खेती के लिए, सबसे पहले आपको एक उचित जमीन चुनना होगा जो अमरूद के लिए उपयुक्त होता है। अमरूद की खेती के लिए गहरी और अच्छी निर्धारित जलवायु वाली मिट्टी अच्छी होती है।
कीट : कीट उन जीवों को कहते हैं जो फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। ये जीव एक से अधिक प्रकार के होते हैं जैसे कि कीटाणु, कीड़े, फुटकरी, मक्खी, कौए, बच्चड़े, चींटियों आदि। ये कीट खेती के फसलों में आक्रमण करके उन्हें नष्ट कर देते हैं या उनके विकास और उत्पादकता को कम कर देते हैं।
अमरूद कीटों की नियंत्रण के लिए कुछ उपाय हो सकते हैं जैसे:
- नींबू का रस और अदरक का रस स्प्रेय करना: अमरूद के पेड़ों को नींबू का रस या अदरक का रस स्प्रेय करना कीटाणुओं से लड़ाई करने में मदद कर सकता है।
- नुकसान पहुंचाने वाले कीटों के लिए कीटनाशक दवा का उपयोग करें।
- पौधों को नियमित रूप से खाद दें ताकि वे स्वस्थ रहें और कीटाणुओं से लड़ने की ताकत रखें।
- फसल को नियमित रूप से चेक करें और नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को निकालें।
खर-पतवार के लिए, जब फल पकने लगते हैं तो उन्हें पका हुआ अमरूद कहा जाता है। इस दौरान, फल अधिकतम गुणवत्ता तक पहुंचते हैं और उनका स्वाद मीठा होता है। इस दौरान, अमरूद पौधों को प्रत्येक सप्ताह में तरल खाद देना उपयुक्त होता है। फलों को टूटने से रोकने के लिए एक पर्याप्त समर्थ स्ट्रक्चर का होना भी आवश्यक होता है।
अमरूद कीटों द्वारा प्रभावित होता है जो उनके पत्तों, फलों और डंठल पर प्रतिक्रिया दिखाते हैं। यहां कुछ आम कीट हैं जो अमरूद की खेती को प्रभावित करते हैं:
- अमरूद छिद्रक माशी: यह एक छोटी सी माशी होती है जो अमरूद के छिद्रों में प्रवेश करती है और फल को खराब करती है। इसके लिए अमरूद के पौधों पर इमिडाक्लोप्रिड (Imidacloprid) जैसे कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है।
- अमरूद सफेद पेड़ी: यह कीट अमरूद की पत्तियों पर पैदा होती है जो फलों को क्षति पहुंचाती है। इसके लिए, प्य्रेथ्रॉइड (Pyrethroid) जैसे कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है।
- फलबोर्न काले छोटे कीट: ये कीट अमरूद के फलों को खराब करते हैं। इसके लिए, अमरूद के पौधों पर दो-तीन हफ्ते के अंतराल से स्प्रे कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है।
- अमरूद थर्माइट: ये कीट अमरूद के पौधों को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उन्हें मरने के लिए ले जाते हैं
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रोग नियंत्रण : अमरूद कीटों के साथ साथ, कुछ रोग भी अमरूद की खेती को प्रभावित कर सकते हैं। निम्नलिखित हैं कुछ रोग और उनके नियंत्रण के बारे में जानकारी:
- अमरूद का बीमारी बैक्टीरियल ब्लाइट: यह बीमारी अमरूद के पेड़ों के तने और पत्तियों पर दाने जैसे छोटे दाग बनाती है। इसके लिए अमरूद पेड़ों के रोग प्रतिरोधक विकास के लिए कलिफोर्निया से प्राप्त शीतल पौधों का उपयोग किया जा सकता है।
- अमरूद का रोग फायदी फंगसाइड: यह रोग अमरूद के पत्तों पर सफेद दाग बनाता है जो फलों को खराब करते हैं। इसके लिए, अमरूद के पेड़ों पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (Copper oxychloride) जैसे फंगिसाइड का उपयोग किया जा सकता है।
- अमरूद का रोग अंगुलीमोज: यह रोग अमरूद के पत्तों के किनारों पर काले धब्बे बनाता है और उन्हें खराब करता है। इसके लिए, अमरूद के पौधों पर मैनकोजेब (Mancozeb) जैसे फंगिसाइड का उपयोग किया जा सकता है।
- करोद का रोग रक्त वाम: यह रोग अमरूद के पत्तों के ऊपर लाल रंग के छोटे दाग बनाता है जो बड़े होकर खूनी निकलते हैं। इसके लिए, अमरूद के पेड़ों को सूखा करना जरूरी होता है और उन्हें बारिश से बचाने के लिए आवेश कवर (Mulching Cover) का उपयोग किया जा सकता है।
- अमरूद का रोग वायरसी रोलींग समुद्री तट वायरस: यह रोग अमरूद के पत्तों पर सफेद दाग बनाता है जो उन्हें खराब करते हैं। इसके लिए, अमरूद के पेड़ों को बीज से ही वायरस के लिए संशोधित जीनोम के द्वारा सुरक्षित किया जा सकता है।
इन रोगों से बचने के लिए, समय-समय पर पेड़ों की जांच करनी चाहिए और रोगों के लक्षणों का पता लगाना चाहिए। इसके अलावा, फंगिसाइड या अन्य कीटनाशकों का उपयोग करना चाहिए जब रोगों के लक्षण दिखाई दें। रोगों से बचाव के लिए, स्वस्थ और विकसित अमरूद पौधों का चयन करना भी बहुत महत्वपूर्ण है।
फलों की तुड़ाई और उपज : अमरूद की तुड़ाई उसके पकने फलों के रंग पर निर्भर करती है। अधिकांश अमरूदों का पकना संभवतः जून से सितंबर के बीच होता है। यदि आप फल के पकने का समय जानना चाहते हैं, तो आप अपने स्थान की मौसम जानकारी ले सकते हैं और उसे आधार बनाकर फलों की तुड़ाई का समय तय कर सकते हैं।
अमरूद को तुड़ाई करने से पहले, उसे ध्यान से जांच करें और पूरी तरह से पक जाने की पहचान करें। तुड़ाई के लिए, आप एक छूरा या काटनी का उपयोग कर सकते हैं। फल को आसानी से काटा जा सकता है जब वह पूरी तरह से पक जाता है और थोड़ा नरम हो जाता है।
अमरूद की उपज पेड़ की विविधता और उसकी संपादन तकनीकों पर निर्भर करती है। स्वस्थ अमरूद के पेड़ों से, आप प्रति पेड़ लगभग 50 से 100 किलो तक की उपज प्राप्त कर सकते हैं। यदि आप अमरूद की बगीचा लगाने की योजना बना रहे हैं, तो उचित दूरी के साथ पेड़ लगाएं ताकि पौधों के बीच पर्याप्त जगह रहे।
उचित दूरी के साथ पेड़ लगाने के लिए, आपको अमरूद के पेड़ों की विशिष्ट विविधता और उनकी विशेषताओं को समझना आवश्यक होगा। अमरूद के पेड़ एक दूसरे से कम से कम 6-7 मीटर की दूरी पर लगाए जाने चाहिए ताकि वे पूरी तरह से फैल सकें। आप इस दूरी को आपस में लगभग 3-4 मीटर तक भी बढ़ा सकते हैं जब आप पेड़ लगाने के लिए अधिक जगह उपलब्ध कराते हैं।
अमरूद के पेड़ की उचित फसल नियंत्रण तकनीकें इस प्रकार हो सकती हैं:
- बीजों के स्प्रेयिंग और तैयारी: अमरूद के बीजों को पौधे लगाने से पहले स्प्रेय किया जा सकता है ताकि उनमें कीटाणुओं से बचाया जा सके।
- फसल की देखभाल: अमरूद के पेड़ों को नियमित रूप से नींबू के रस के साथ पानी से स्प्रेय किया जा सकता है, जिससे कीटाणुओं और रोगों से बचा जा सकता है।
- खाद की उपयोग: अमरूद के पेड़ों को नियमित रूप से खाद देने से उनकी उपज में वृद्धि होती है।
सीताफल की खेती के लिए चरण-दर-चरण मार्गदर्शिका
परिचय : Sitafal ,सीताफल, कस्टर्ड एप्पल ,शरीफा, (Custard apple)
सीताफल एक फल होता है जो अक्सर “कस्टर्ड एप्पल” या “शरीफा” नाम से भी जाना जाता है। यह फल भारत, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, और अमेरिका के कुछ हिस्सों में पाया जाता है। सीताफल फलों में विटामिन ए, विटामिन सी, कैल्शियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम, फाइबर और कई अन्य पोषक तत्वों की अच्छी मात्रा होती है। सीताफल फल की मधुर, मीठी और स्पंजी गुठली होती है जिसे सीधे फल के अंदर से खाया जाता है।
यह भारत में खेती भी की जाती है और कुछ राज्यों जैसे कि मध्य प्रदेश में सीताफल की खेती अधिक की जाती है। कुछ अन्य राज्यों में भी सीताफल की खेती होती है जैसे कि उत्तरप्रदेश आदि |
सीताफल (Custard apple) भारत में उगाया जाने वाला एक मीठा फल है जो कि धार्मिक तथा आयुर्वेदिक महत्त्व का रखता है। सीताफल एक अत्यधिक संतुलित मात्रा में विटामिन सी, विटामिन ए, कैल्शियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम और शुष्क भोजन तत्वों का उच्च स्रोत है। इस फल को सीधे फल के अंदर की लाल, स्पंजी गुठली खाया जाता है।
Custard apple
इसकी खेती भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के कुछ अन्य देशों में की जाती है। सीताफल की खेती तकनीक और चरण-दर-चरण की जानकारी के लिए आपको स्थानीय कृषि विशेषज्ञों से संपर्क करना चाहिए।
सीताफल या सीताफल के लिए जलवायु की स्थिति :
जैसा कि मैंने पहले बताया, सीताफल फल उष्णकटिबंधीय जलवायु को ज्यादातर पसंद करता है जो बहुत गर्म और नमी की मात्रा वाली होती है। सीताफल फल की किसी भी विशेष मानदंड के लिए विभिन्न जलवायु में बोया जा सकता है, लेकिन यह उष्णकटिबंधीय जलवायु के अधिकांश क्षेत्रों में उगाया जाता है।
फल की अधिकतम उत्पादकता के लिए सीताफल का उत्पादन समुचित जलवायु में होता है जो अधिक उष्णकटिबंधीयता और मात्रा वाली नमी होती है। मानव समुदाय के लिए उपयुक्त सीताफल की खेती उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जा सकती है जैसे कि भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश,
जैसा कि मेरे द्वारा भी पहले बताया गया है, सीताफल उष्णकटिबंधीय जलवायु को ज्यादातर पसंद करता है जो बहुत गर्म और नमी की मात्रा वाली होती है। अतः भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सीताफल की खेती उपयुक्त होती है।
यदि आप सीताफल की खेती करना चाहते हैं तो आपको अपने स्थान के अनुसार समुचित तापमान और जलवायु को ध्यान में रखना होगा। स्थान, तापमान, और जलवायु आपके स्थान पर उपलब्ध होने वाली स्थानीय जानकारी के आधार पर निर्धारित किए जा सकते हैं। आप स्थानीय कृषि विशेषज्ञों से भी सलाह ले सकते हैं।
कस्टर्ड एप्पल के अन्य नाम
कस्टर्ड एप्पल फल के अन्य नाम हो सकते हैं:
- सीताफल (Sitafal)
- शरीफा (Sharifa)
- शतरंज (Shatranj)
- फ्रूट क्रीम एपल (Fruit Cream Apple)
- ग्रीन कस्टर्ड एप्पल (Green Custard Apple)
- रामफल (Ramphal)
- आटा (Ata)
- सेठफल (Sethphal)
- गंटे का फल (Gante ka Fal)
इन नामों में से कुछ नाम विभिन्न भागों और भाषाओं में इस फल के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
सीताफल की किस्में
सीताफल फल की कुछ मुख्य किस्में हैं:
- सारीया (Sharifa)
- रामफल (Ramphal)
- सीताफल (Sitafal)
- पूर्णेफल (Purnaphal)
- स्वर्णरेखा (Swarnarekha)
- ग्रीन सीताफल (Green Sitafal)
- बालन (Balan)
- जम्बु (Jambu)
ये सीताफल के विभिन्न वैशिष्ट्यों और उनकी विशेषताओं के आधार पर नामों की अलग-अलग किस्में हैं। यह फल भारत, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, और अमेरिका के कुछ हिस्सों में पाया जाता है।
सीताफल की कुछ और अन्य किस्में
कुछ सीताफल की अन्य किस्में शामिल हैं:
- मास्का (Maska)
- डॉटरे (Dotrei)
- अतिसीताफल (Atis Sitafal)
- सीताफल का डंठल (Sitafal ka Danthal)
- एस नाइन (S-9)
- एस फूर (S-4)
- एस फाइव (S-5)
- बांगनपल्ली (Bangnapalli)
- मलैका (Malika)
ये अन्य किस्में भी सीताफल के विभिन्न भागों और स्थानों में प्रचलित हैं। जैसा कि मैंने पहले भी बताया था, सीताफल एक मीठा और स्वादिष्ट फल है जो विभिन्न विशेषताओं वाली किस्मों में मिलता है।
सीताफल या शरीफा की खेती के लिए सर्वोत्तम मिट्टी :
सीताफल या शरीफा की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मिट्टी समृद्ध, भरपूर मिट्टी होती है जो अच्छी तरह से निर्णयित होती है। इसके अलावा, इस फल की खेती के लिए मिट्टी में अच्छी निर्णयितता से अधिक नमी (जीरो टू टेन प्रतिशत), उच्च वातावरण और कम से कम पीएच (pH)। इसके लिए सुगर एपल फल की खेती में उपयुक्त मिट्टी का पीएच 5.5 से 7 होना चाहिए।
आपको सीताफल फल की अधिक जानकारी चाहिए तो स्थानीय कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेना उचित होगा। वे आपको सीताफल फल की उपयुक्त मिट्टी तकनीक, उपजाऊ विधि, विविध खेती सम्बन्धी मुद्दों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान कर सके |
Custard apple
सीताफल या शरीफा की खेती के लिए सर्वोत्तम मिट्टी के बारे में और अधिक विस्तृत से बताए
सीताफल या शरीफा की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मिट्टी तरल, उपजाऊ, रेतीली व वातावरण में अधिकतम नमी होती है। सीताफल की खेती के लिए धातुमय मिट्टी भी उपयुक्त होती है। इसके अलावा, मिट्टी में सुगर एपल फल की खेती में उपयुक्त पीएच (pH) भी 5.5 से 7 के बीच होना चाहिए। सीताफल की खेती के लिए मिट्टी को अच्छी तरह तैयार किया जाना चाहिए। सीताफल की खेती के लिए मिट्टी को मलवा, लोम व माटीपास जैसी मिट्टियों से तैयार किया जाता है। शीघ्र निर्धारित क्षेत्र में सीताफल की खेती करने से पहले कृषि विशेषज्ञ से सलाह लेना भी महत्वपूर्ण होगा।
सीताफल का रोपण और दूरी :
सीताफल का रोपण और दूरी निर्भर करता है विशेषताओं पर जैसे प्रकार, विद्युत तथा खाद्य स्तर आदि के साथ। इसलिए, सीताफल की खेती के लिए दो वर्षों की आवश्यकता होती है जो अधिकतम 8 मीटर की दूरी पर होती है। दरअसल, सीताफल के वृक्ष गंभीर और सरल रोगों और कीटाणु जैसे बीमारियों से प्रभावित हो सकते हैं। कुल मिलाकर, सीताफल की खेती के लिए उचित रोपण अंतिम गर्भारूपता के आधार पर भोजनावस्था एवं बीज कोशिकाओं के स्तर आदि उन विशेषताओं पर निर्भर करता है जो सीताफल फल की खेती के लिए आवश्यक होते हैं। आपको सीताफल फल की खेती से संबंधित अधिक जानकारी क
Custard apple
सीताफल की रोपण सामग्री :
सीताफल की रोपण सामग्री में आमतौर पर जीवाश्म, जीवाणुओं, मृदा संरचना, समृद्ध उपलब्धियों और सबसे महत्वपूर्ण तौर पर जल शामिल होता है। जल प्रबंधन एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है, क्योंकि उचित जल सेवन सीताफल पौधों को स्थिर रखता है और सामग्री के सभी तत्वों को समुचित ढंग से स्थानांतरित करता है ताकि सीताफल की उन्नति में सक्षम बनाए रखे। सामग्री के समुचित ढंग से स्थानांतरित करने के लिए उचित खाद का उपयोग भी किया जाता है। आपको स्थानीय कृषि विशेषज्ञों से किस्में, उपजाऊता, खेती की तकनीकों और सम्बन्धित पर्यवेक्षण की अधिक जानकारी लेन
शरीफा उगाने के लिए पानी की आवश्यकता :
शरीफा फल की उन्नति और वृद्धि के लिए उचित पानी की आवश्यकता की मात्रा स्थान के अनुसार भिन्न होती है। यह आधिकारिक फिगर नहीं है, लेकिन सामान्यतः, शरीफा फल की उन्नति के लिए अधिकतम 150 से 200 सेमी वर्षा की आवश्यकता होती है। शरीफा फल को प्रारंभिक अवस्था में नियमित रूप से नम रखने की आवश्यकता होती है ताकि पौधे का विकास सही ढंग से हो सके। शुरुआती दिनों में 2 से 3 लीटर पानी प्रति पौधे देने की सलाह दी जाती है, जो आगे भविष्य में बढ़ाया जा सकता है। यदि शरीफा फल की खेती पानी की कमी वाले इलाकों में की जाती है, तो समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
यदि शरीफा फल की खेती पानी की कमी वाले इलाकों में की जाती है, तो पौधे की वृद्धि होने में अवरोध आ सकता है और इससे संभवतः लगभग 40-50 फीसदी भ्रमण का क्षति हो सकता है। शरीफा फल की उन्नति और स्वस्थ विकास के लिए नियमित जल पहुंचाना बहुत महत्वपूर्ण होता है। यदि शरीफा फल की खेती पानी की कमी वाले इलाकों में की जाती है, तो उचित कृषि प्रथाओं का पालन करना बहुत महत्वपूर्ण होता है जैसे कि फसल को पानी कम भी होने पर भी पौधों को स्थिर रखते हुए समय-समय पर पानी प्रदान करते हुए किया जाना चाहिए। अधिकतम प्रभाव के लिए, समय-समय पर आवश्यक अंतरालों में पानी देते रहना चाहिए |
शरीफा के पौधों की खाद और उर्वरक की आवश्यकताएँ :
शरीफा पौधों के लिए खाद और उर्वरक की उचित मात्रा से उनके स्वस्थ विकास और उन्नति पर असर पड़ता है। शुरुआती दिनों में, शरीफा के पौधों को पोषण देने के लिए बेरना कम्पोस्ट और वर्मी कम्पोस्ट जैसे उर्वरकों का उपयोग किया जा सकता है। शरीफा के उपरोक्त उर्वरकों से अधिक रुचि रखने वालों के लिए, अमोनियम सल्फेट, सुल्फेट ऑफ पोटेशियम, युरिया और सुल्फेट ऑफ मैग्नीशियम जैसी मिश्रण उपयोगी हो सकते हैं। उर्वरक की उचित मात्रा निर्धारित करने के लिए, पौधों की नस्ल, उम्र और विकास की स्थिति के अनुसार शुरुआत में 100 ग्राम – 200 ग्राम और फिर धीरे-धीरे बढ़ाया जा सकता है
महत्वपूर्ण सूचना के लिए, शुरुआत में 100 ग्राम – 200 ग्राम खाद उपयोग किया जाना चाहिए और उसके बाद खाद की मात्रा को धीरे-धीरे बढ़ाया जा सकता है, जब पौधों की वृद्धि की आवश्यकता होती है। उर्वरक की उचित मात्रा का निर्धारण करने के लिए स्थानीय जलवायु, मृदा और खेती के अन्य पारिस्थितिक तत्वों को ध्यान में रखा जा सकता है।
कस्टर्ड सेब के पेड़ों का प्रशिक्षण और छंटाई :
कस्टर्ड सेब के पेड़ों के प्रशिक्षण और छंटाई के लिए निम्न चरणों का पालन किया जा सकता है:
- उपयुक्त मिट्टी उपलब्ध कराएं: कस्टर्ड सेब के पेड़ों के लिए उपयुक्त मिट्टी मृदात्मक होनी चाहिए जो सुरक्षित और उपयोगी हो।
- उपयुक्त समय पर छाए दें: कस्टर्ड सेब पेड़ समुद्र तटों के निकट या कम भूमि वाले क्षेत्रों में अधिक अच्छा फल देते हैं। इन्हें उचित समय पर छाए दें ताकि वे अपनी वृद्धि को प्राप्त कर सकें।
- पौधे का उचित सांढ़ान: कस्टर्ड सेब पेड़ का उचित सांढ़ान उन्नत विकास के लिए आवश्यक होता है। यहमूर्त टाइप की खाद, उर्वरक, नाइट्रो
- छंटाई करें: कस्टर्ड सेब पेड़ का उचित छंटाई गतिविधि है जो उन्नत विकास के लिए उचित ढंग से अनुसरण की जानी चाहिए। यह सबसे अधिक विशिष्ट तत्व है जो कस्टर्ड सेब पेड़ के पौधों की उन्नति और उन्नति के लिए अत्यंत आवश्यक होता है। छंटाई के दौरान बले को कट दें और उन्हें अच्छी तरह से समेटें ताकि पेड़ बढ़ना शुरू कर सकें।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि कस्टर्ड सेब के पौधों की विकास और उन्नति सैकड़ों तरीकों से प्रभावित हो सकती है। इसलिए श्रम, समय और उचित समझ इन पेड़ों को प्रशिक्षण और छंटाई में निवेश करते समय बहुत महत्वपूर्ण है
यह बात सही है कि कस्टर्ड सेब के पौधों की विकास और उन्नति सैकड़ों तरीकों से प्रभावित होती है। इन पौधों को उचित प्रशिक्षण और छंटाई देते समय, विशेषता के अनुसार उन्नत विकास के लिए उचित समय और श्रम का निवेश करना बहुत महत्वपूर्ण होता है।
कस्टर्ड सेब के पेड़ों को प्रथम दो साल तक निरंतर प्रशिक्षण देना चाहिए। इन दो सालों में, उन्हें सक्रिय तौर पर देखभाल कर, उन्हें उचित सांढ़ान, जल ान, उत्तिष्ठित विकास (प्रुनिंग) और पत्तियों और फलों के रसायनों के बारे में शिक्षा दें। एक अनुभवी बागबान की सलाह भी देना उचित हो सकता है।
शरीफा सेब की उपज :
शरीफा सेब की उपज के लिए, इसकी बीजों को साल के मार्च-अप्रैल के अंत तक बोएं। इस पौधे को विशेष रूप से गर्म और द्युल्लित क्षेत्रों में उगाया जाता है। यह पौधा धीमी गति से बढ़ता है और इसलिए उसे समय-समय पर पानी और खाद के साथ विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। इसका फल अधिकतर अक्टूबर से फरवरी माह तक उत्पन्न किया जाता है लेकिन कुछ खेतीबाड़ी क्षेत्रों में इसका उत्पादन साल के सारे महीनों में होता है।
शरीफा सेब के पौधों को उन्नत बनाने के लिए, उन्हें नियमित रूप से छाया देना और एक भरपूर मात्रा में पानी देना आवश्यक होता है।
कस्टर्ड सेब उगाने के लिए कम से कम आवश्यक चीज :
कस्टर्ड सेब को उगाने के लिए कुछ आवश्यक चीजें हैं जैसे कि उचित मिट्टी, बीज या सागर या युक्ति द्वारा प्रत्येक पौधे के लिए बनाए गए उर्वरकों का उपयोग। साथ ही इसे नियमित रूप से पानी देना आवश्यक है तथा सुन-light की उपलब्धता भी उगाने में महत्वपूर्ण होती है। इसके अलावा, कस्टर्ड सेब पौधा नियमित रूप से खाद और उर्वरकों के साथ खाद प्रदान करने की आवश्यकता होती है।
ज्ञात हो कि कस्टर्ड सेब उन क्षेत्रों में उगाया जाता है जो गर्म और द्युल्लित होते हैं। इस पौधे की वृद्धि पूरे साल ओगण की शुरुआत में होती है। यह पौधा अधिकतर मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन यह अधिकतर मिट्टी में अच्छे फल प्रदान करता है जो तल या पतली मृदा होती है। इस पौधे को समय-समय पर नियमित रूप से पानी देना आवश्यक होता है। इसके अलावा, इसे एक स्थान पर लगातार 10 से 15 साल तक दुर्गम परिस्थितियों में देखभाल किए जा सकें।
इसके अलावा, विशेषज्ञों द्वारा बताया जाता है कि समय-समय पर इस पौधे को घास या पत्तियों से साफ करना एवं उससे नुकसान पहुंचाने वाली बीमारियों से बचाने के लिए नियमित रूप से देखभाल की आवश्यकता होती है।
कस्टर्ड सेब पौधे को नियमित रूप से घास और पत्तियों से साफ करना एवं उससे नुकसान पहुंचाने वाली बीमारियों से बचाने के लिए नियमित रूप से खेतीबाड़ी देखभाल की आवश्यकता होती है। इस पौधे का समय-समय पर प्रथम लोगों से संपर्क किया जाना चाहिए जिससे वे इसके नियमित रूप से आवश्यक खेतीबाड़ी देखभाल के बारे में आपको विस्तृत जानकारी दे सकें।
इसके अलावा, अधिक सूचना प्राप्त करने के लिए स्थानीय कृषि प्राधिकरण से संपर्क किया जा सकता है जो इस पौधे की विस्तृत खेतीबाड़ी देखभाल और बीमारियों से बचाव तकनीकों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान कर सकें
आम की खेती
1 मिट्टी और जलवायु
2 प्रगतिशील प्रजातियां
3 गड्ढे तैयार करना और वृक्षारोपण
4 आम की फसल में प्रवर्धन
5 खाद और उर्वरकों का प्रयोग
6 सिंचाई
7 फसल में निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण
8 रोग और उसका नियंत्रण
9 कीट और उनका नियंत्रण
10 कटाई
11 औसत उपज
आम की खेती लगभग पूरे देश में होती है। यह मनुष्य का अत्यंत प्रिय फल माना जाता है, इसमें खट्टापन मिला आ मीठापन पाया जाता है। जो विभिन्न प्रजातियों के अनुसार फलियों में कम या ज्यादा मिठास पाई जाती है। कच्चे आम की चटनी का अचार कई प्रकार के पेय के रूप में प्रयोग किया जाता है। इससे जैली, मुरब्बा, शरबत आदि बनाए जाते हैं। यह विटामिन और बी का अच्छा स्रोत है।
मिट्टी और जलवायु
आम की खेती उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण दोनों जलवायु में की जाती है। समुद्र तल से 600 मीटर की ऊंचाई तक आम की खेती सफल होती है, इसके लिए 23.8 से 26.6 डिग्री सेंटीग्रेड का तापमान उत्तम होता है। आम की खेती हर प्रकार की भूमि में की जा सकती है। परन्तु अधिक रेतीली, पथरीली, क्षारीय तथा जल भराव वाली भूमि में इसे उगाना लाभदायक नहीं होता तथा अच्छे जल निकास वाली दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है।
प्रगतिशील प्रजातियां
हमारे देश में उगाई जाने वाली किस्मों में दशहरी, लगड़ा, चौसा, फाजरी, बॉम्बे ग्रीन, अल्फांसी, तोतापारी, हिमसागर, किशनभोग, नीलम, सुवर्णरेखा, वनराज आदि प्रमुख प्रगतिशील किस्में हैं। आम की नई उगाई जाने वाली किस्मों में मल्लिका, आम्रपाली, दशहरी-5, दशहरी-51, अंबिका, गौरव, राजीव, सौरव, रामकेला और रत्ना प्रमुख प्रजातियां हैं।
गड्ढे की तैयारी और वृक्षारोपण
पूरे देश में आम के पेड़ लगाने के लिए बारिश का मौसम उपयुक्त माना जाता है। जिन क्षेत्रों में अधिक वर्षा होती है, वहाँ आम के बागों को मानसून के अंत में लगाना चाहिए। मई माह में लगभग 50 सेमी व्यास एवं एक मीटर गहरा गड्ढा खोदकर उसमें लगभग 30 से 40 किग्रा सड़ी गोबर की खाद प्रति गड्ढा भरकर 100 ग्राम क्लोरोपाइरीफॉस चूर्ण छिड़क देना चाहिए। पौधे की किस्म के हिसाब से पौधे से पौधे की दूरी 10 से 12 मीटर होनी चाहिए, लेकिन आम्रपाली किस्म के लिए यह दूरी 2.5 मीटर ही होनी चाहिए.
आम की फसल में प्रसार
आम के बीज के पौधे तैयार करने के लिए आम की गुठली जून-जुलाई में बोई जाती है। आम के प्रवर्धन के तरीकों में गिफ्ट कटिंग, विनियर, सॉफ्टवुड ग्राफ्टिंग, ब्रांचिंग कटिंग और बडिंग प्रमुख हैं, विनियर द्वारा अच्छी किस्में और सॉफ्टवुड ग्राफ्टिंग। पौधे कम समय में तैयार हो जाते हैं।
खाद और उर्वरकों का उपयोग
जुलाई माह में पेड़ के चारों ओर बने खांचे में बागी के दस वर्ष की आयु तक आयु के गुणांक में प्रत्येक वर्ष प्रति वृक्ष 100 ग्राम नाइट्रोजन, पोटाश एवं फास्फोरस देना चाहिए। इसके अलावा मिट्टी की भौतिक और रासायनिक स्थिति में सुधार के लिए प्रति पौधे 25 से 30 किलोग्राम अच्छी तरह से सड़ी हुई गाय का गोबर देना उचित पाया गया है। जैविक खाद के लिए जुलाई-अगस्त में एक थाली में 40 किलो गोबर की खाद के साथ 250 ग्राम एजिस्पिरिलम मिलाकर उत्पादन में वृद्धि पाई गई है।
सिंचाई
आम की फसल में रोपण के प्रथम वर्ष में आवश्यकतानुसार 2-3 दिन के अन्तराल पर तथा दूसरे से 5वें वर्ष में आवश्यकतानुसार 4-5 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए। और जब पेड़ फल देने लगे तो दो या तीन सिंचाई करना जरूरी होता है। आम के बगीचों में पहली सिंचाई फल लगने के बाद, दूसरी सिंचाई फलियों के काँच की गोली के बराबर अवस्था में होने पर तथा तीसरी सिंचाई फलियों के पूर्ण विकसित हो जाने पर करनी चाहिए। थाली में ही नालियों से सिंचाई करनी चाहिए ताकि पानी की बचत हो सके।
फसल में खरपतवारों की निराई एवं नियंत्रण
आम के बाग को साफ रखने के लिए बागों में साल में दो बार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए, इससे खरपतवार और जमीन के नीचे लगे कीट नष्ट हो जाते हैं, साथ ही घास को समय-समय पर हटाते रहना चाहिए।
रोग और उसका नियंत्रण
आम के रोगों का प्रबंधन कई प्रकार से किया जाता है। जैसे पहले आम के बाग में ख़स्ता फफूंदी रोग लगता है, उसी प्रकार खर्रा या दहिया रोग भी लग जाता है, इसके बचाव के लिए घुलनशील गंधक 2 ग्राम प्रति लीटर पानी या ट्राइमॉर्फ 1 मिली प्रति लीटर पानी या डाइनोकैप 1 मिली प्रति लीटर पहला छिड़काव कलिका निकलने के तुरंत बाद पानी मिलाकर, दूसरा छिड़काव 10 से 15 दिन बाद और तीसरा छिड़काव 10 से 15 दिन बाद करना चाहिए। आम की फसल को एन्थ्रेक्नोज, झाग, झुलसा रोग, डाईबैक एवं लाल रतुआ से बचाने के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में। वर्षा ऋतु के प्रारम्भ में दो छिड़काव घोल बनाकर तथा 2-3 छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए। ताकि हमारे आम की आवक में कोई दिक्कत न हो। इसी प्रकार आम में गुम्मा विकार या कुरूपता भी एक रोग है, इसके उपचार के लिए आम के बगीचों में जनवरी-फरवरी माह में कम प्रकोप वाले फूलों को तोड़ लें तथा अधिक प्रकोप होने पर एनएए की 200 मात्रा में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। पीपीएम केमिकल 900 मिली प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर। इसके साथ ही आम के बागों में कोयले का रोग भी पाया जाता है। जिसके नियंत्रण के लिए आप सभी किसान भाई जानते हैं बोरेक्स या कास्टिक सोडा 10 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल कर फल आने पर सबसे पहले छिड़काव करना चाहिए और दूसरा छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए ताकि हमारे फल खराब न हों कोल्या रोग से खराब हो जाते हैं।
कीट और उनका नियंत्रण
आम में वीविल बीटल कोट, गुजिया कोट, मैंगो कैटरपिलर और स्टेम बोरर, मेड फ्लाई ये कीट हैं। आम की फसल को बॉल वीविल से बचाने के लिए पहला छिड़काव फूल आने से पहले एमिडाक्लोरपिड 0.3 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर करें। दूसरा छिड़काव जब फल मटर के दाने के बराबर हो जाए तो कार्बेरिल 4 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। इसी प्रकार दिसंबर के प्रथम सप्ताह में आम की फसल को गुजिया कीट से बचाने के लिए तने के चारों ओर गहरी जुताई कर देनी चाहिए तथा कीट के ऊपर चढ़ जाने पर तने के चारों ओर 200 ग्राम क्लोरोपाइरीफॉस पाउडर प्रति पेड़ छिड़क देना चाहिए। पेड़। एमिडाक्लोरपिड 0.3 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर जनवरी माह में 15 दिन के अन्तराल पर दो बार तथा आम की छाल खाने वाली इल्ली एवं तना बेधक मोनोक्रोटीफॉस 0. के नियंत्रण हेतु 0. रूई को 5 प्रतिशत में भिगोकर छिद्र बंद कर देना चाहिए। रासायनिक घोल बनाकर तने में बने छिद्र में डाल देते हैं। इस तरह यह कैटरपिलर समाप्त हो जाता है। मैंगो मेड मक्खी के नियंत्रण के लिए मिथाइल्यूगिनल ट्रेप का प्रयोग करें। छह अनुपात चार अनुपात एक के अनुपात में शराब मिथाइल और मैलाथियान के प्लाई लकड़ी के टुकड़े के घोल में 48 घंटे डुबोने के बाद, मई के पहले सप्ताह में पेड़ पर जाल लटका दें और दो महीने बाद जाल को बदल दें।
फसल काटने वाले
परिपक्व आम की फलियों की तुड़ाई 8 से 10 मिमी लंबे डंठल से करनी चाहिए, ताकि फलियों पर तना सड़न रोग का खतरा न हो। कटाई के समय फलियों को चोट या खरोंच न लगने दें और मिट्टी के संपर्क में आने से बचें। आम की फलियों को उनकी प्रजाति, आकार, वजन, रंग और पकने के आधार पर वर्गीकृत किया जाना चाहिए।
औसत कमाई
रोग एवं कीट के पूर्ण प्रबंधन पर लगभग 150 किग्रा से 200 किग्रा प्रति वृक्ष प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन प्रजातियों के आधार पर यह उपज अलग-अलग पाई गई है।
चीकू की खेती (या) चीकू की खेती की जानकारी गाइड :
चीकू एक पौष्टिक फल है जो भारत में बहुत लोकप्रिय है। यह एक उपजाऊ फल होता है जो स्वाद में मीठा होता है। चीकू की खेती एक लाभदायक व्यवसाय हो सकती है, लेकिन इससे पहले आपको कुछ जानकारी और उपकरणों की आवश्यकता होगी।
चीकू की खेती के लिए उपयुक्त जमीन की चयन करना बहुत महत्वपूर्ण है। चीकू की खेती के लिए सर्दी नहीं चाहिए, इसलिए सर्दी उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में इसे नहीं उगाया जाना चाहिए। चीकू के लिए उपयुक्त जमीन गहरी, लोमड़ी मिट्टी होनी चाहिए जो नमी रखती हो।
चीकू की खेती के लिए बीजों का उत्पादन स्थान प्रतिमाह कम से कम 15 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर होना चाहिए। बीजों को तैयार करने के लिए, चीकू के फलों को काट लें और उन्हें एक बाल्टी में मिला दें। इसके बाद, इस मिश्रण को एक साफ कपड़े से छानकर रखें। बीजों को सुखाने के लिए इन्हें धूप में रखें और उन्हें लगभग एक सप्ताह तक सुखाएं।
चीकू की खेती के लिए जमीन को गहराई से खोदकर उसमें गोबर कंपोस्ट या खाद डालें। इसके बाद, जमीन को धीरे-धीरे बनाएं और समतल करें। जमीन को बारीक धानों से बांधने के लिए जमीन को ढेला बनाएं और फिर उसमें चीकू के बीज बोने। बोने के बाद, जमीन को पानी से भर दें और सभी बीजों को नमी देने के लिए उन्हें पानी से छिड़काव करें।
चीकू की खेती के लिए समय-समय पर पानी की आवश्यकता होती है। चीकू के पौधों को धूप में नहीं रखना चाहिए क्योंकि यह उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है। चीकू के पौधों को बारिश से भी बचाना चाहिए।
चीकू के पौधों पर कीटों और रोगों का प्रभाव हो सकता है। इसलिए, पौधों की नियमित जांच करें और जरूरत पड़ने पर इन चीजों के लिए उपचार करें। चीकू की फसल का कटाव उसकी पकने की अवस्था पर निर्भर करता है। चीकू की फसल को उसके पकने के समय ही काट लें और उसे स्थान से हटा दें।
सपोटा या चीकू के बारे में :-
चीकू एक मीठा फल है जो विभिन्न विधियों से खाया जा सकता है, जैसे कि स्वादिष्ट फ्रूट सलाद, शेक, और शरबत। यह उष्मकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है।
चीकू फल का रूप विभिन्न रंगों में होता है, जैसे हल्के पीले से गहरे पीले और हरे रंग के बीच में। यह फल आमतौर पर नरम होता है और इसमें बहुत सारा पानी होता है।
चीकू का सेवन आपके स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है। यह फल मध्यम मात्रा में विटामिन C, फाइबर, और एंटीऑक्सिडेंट होते हैं। इसका सेवन आपके शरीर को स्वस्थ रखने में मदद कर सकता है। चीकू में पोषण और सुरक्षा से भरपूर होते हैं, इसलिए यह सेहत के लिए एक उत्तम फल होता है।
चीकू की खेती उष्मकटिबंधीय क्षेत्रों में अधिकतर की जाती है। इसके लिए, सबसे पहले उपयुक्त जमीन का चयन करना होता है। जमीन को अच्छी तरह से तैयार करना होता है |
चीकू फल एक स्वस्थ फल होता है जो अपने मीठे स्वाद, सुगन्धित और मलद्वार को स्वस्थ रखने के लिए जाना जाता है। इस फल में विटामिन सी, विटामिन ए, विटामिन बी कम्प्लेक्स, कैल्शियम, फाइबर और अन्य पोषक तत्व होते हैं। चीकू के सेवन से वजन कम करने, डायबिटीज, एनीमिया और अन्य समस्याओं को दूर करने में मदद मिलती है।
चीकू का पेड़ एक छोटा सा पेड़ होता है, जो ज्यादातर उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है। यह एक स्वस्थ पेड़ होता है जो वर्ष के कुछ महीनों में फलों को उत्पन्न करता है। चीकू के पेड़ को खेती के लिए जमीन में लगाया जाता है। अगर आप चीकू के फल के साथ-साथ चीकू के पेड़ के बारे में भी जानना चाहते हैं तो निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखें:
- चीकू के पेड़ की उम्र 50 से 60 वर्षों की होती है।
- चीकू का पेड़ सबसे अधिक जल्दी अंकुरित होने वाले पेड़ों में से एक होता है।
- चीकू के पेड़ की उँचाई 10 से 15 मी
भारत के विभिन्न राज्यों में चीकू के विभिन्न किस्मों की खेती की जाती है। चीकू की मुख्य किस्में अपने रंग, स्वाद, आकार और बीज के आधार पर विभाजित की जा सकती हैं। भारत में चीकू की खेती के लिए उपयुक्त मौसम और मिट्टी के आधार पर अनुभवों के अनुसार निम्नलिखित किस्में उगाई जाती हैं:
- काली चीकू (Black Chiku)
- सफेदी (Safedee)
- बांगला (Bangla)
- ओला (Ola)
- पायटे (Payri)
- सहारनपुरी (Saharanpuri)
- कलाकनद (Kalakand)
- बोम्बई (Bombai)
ये किस्में भारत के विभिन्न राज्यों में उगाई जाती हैं, जिनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल और पश्चिम बंगाल शामिल हैं।
चीकू की खेती के लिए नीचे दिए गए मिट्टी के गुण आवश्यक होते हैं:
भूमि का तापमान: चीकू की उचित उगाई के लिए तापमान 25-35°C के बीच होना चाहिए।
नमी: चीकू की उगाई के लिए नींद उच्च होनी चाहिए। मिट्टी की नमी 60-80% रखना उचित होता है।
खाद: चीकू की उगाई के लिए मिट्टी में पोषक तत्वों का पूर्ण विवरण होना आवश्यक है। मिट्टी में जितना अधिक जैविक खाद होगा, उतने ज्यादा पौष्टिक तत्व मिलेंगे।
अच्छी ड्रेनेज: चीकू की उगाई के लिए ड्रेनेज सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए, ताकि जमीन में पानी जमा नहीं होता है। इससे मिट्टी का संरचना सुषमा बनी रहती है, जो चीकू की उगाई के लिए आवश्यक होती हैं।
चीकू फल को उगाने के लिए शुष्क और गर्म जलवायु उपयुक्त होती है। यह तापमान 25-35°C के बीच होता है।
चीकू फल को उगाने के लिए नीचे दिए गए जलवायु फैक्टर्स आवश्यक होते हैं:
उच्च तापमान: चीकू का पौधा उच्च तापमान के लिए उचित होता है, जो 25-35°C के बीच होता है। जब यह तापमान नीचे जाता है, तो फल की उत्पादकता प्रभावित होती है।
शुष्क और गर्म जलवायु: चीकू की खेती के लिए शुष्क और गर्म जलवायु उचित होती है। बारिश के दौरान फलों का उत्पादन कम हो सकता है और इससे उनमें दाने पैदा नहीं होते हैं।
मुख्य वर्षा के बाद शुष्क वातावरण: चीकू फल को उगाने के लिए मुख्य वर्षा के बाद की शुष्क और गर्म जलवायु उपयुक्त होती है। इससे चीकू के पौधों में नये पत्तों और फलों की उत्पादकता बढ़ती है।
अधिक रौशनी: चीकू फल को उगाने के लिए अधिक रौशनी उपयुक्त होती है। फलों की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए संयंत्रों को सबसे कम से कम 6-8 घंटे धूप में रखा जाना चाहिए। फलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए इसे सबह के समय भी धूप में रखा जा सकता है।
वातावरणीय तत्व: चीकू की खेती के लिए उच्च तापमान और उच्च नमी वाली जलवायु अनुकूल होती है। चीकू की खेती के लिए स्थान चुनते समय ध्यान रखना चाहिए कि यहां तापमान 10-45 डिग्री सेल्सियस तक होता हो और जलवायु उच्च नमी वाली हो।
बारिश: चीकू की खेती के लिए अधिकतम वर्षा राज्यों में 100-150 सेमी प्रति वर्ष होनी चाहिए। चीकू के पेड़ को बारिश से बचाने के लिए इसकी खेती कम वर्षा वाले स्थानों में नहीं की जाती है।
उपलब्ध जल संसाधन: चीकू की खेती के लिए भूमि के साथ-साथ उपलब्ध जल संसाधन भी अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं। अधिकतम उत्पादकता के लिए चीकू की खेती के दौरान पानी की आवश्यकता होती है, इसलिए इसकी खेती के लिए जल संसाधन उपलब्ध होना अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।
भूमि की तैयारी: चीकू की खेती के लिए, सबसे पहले भूमि की तैयारी की जाती है। इसमें भूमि को खोदकर चारों तरफ से लाल मिट्टी निकाली जाती है। इसके बाद गाड़ी से उसे अच्छी तरह से गाड़ लिया जाता है ताकि भूमि को उचित ढंग से फिर से तैयार किया जा सके।
मिट्टी में उर्वरक: चीकू की खेती के लिए मिट्टी में उर्वरक डालना बहुत जरूरी होता है। उर्वरक में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम होते हैं, जो पौधों के विकास के लिए आवश्यक होते हैं।
फसल की उगाई से पहले फुटबॉल में फॉस्फोरस का उपयोग: चीकू की खेती के लिए फुटबॉल में फॉस्फोरस डालकर भूमि को तैयार किया जाता है। फॉस्फोरस को मूल खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जो फसल के विकास में मदद करता है।
चीकू की फसल में रोपण सामग्री की सूची निम्नलिखित है:
- बीज: अच्छी गुणवत्ता के चीकू के बीज का चयन करें।
- उर्वरक: फसल के उत्पादकता को बढ़ाने के लिए उर्वरक का उपयोग किया जाता है। उर्वरक की मात्रा और उपयोग की विधि विभिन्न भूमि तथा मौसम पर निर्भर करती है।
- खाद: फसल के लिए खाद उपलब्धता और भूमि की गुणवत्ता के अनुसार चुनी जाती है। उच्च नाइट्रोजन और फॉस्फोरस युक्त खाद चीकू के लिए अधिक उत्पादक होती है।
- जैविक खाद: चीकू की खेती के लिए जैविक खाद का भी उपयोग किया जा सकता है। इससे भूमि की गुणवत्ता बढ़ती है और फसल का प्रदर्शन भी बेहतर होता है।
- पेस्टिसाइड: चीकू की फसल में कीटों और बीमारियों से बचाव के लिए पेस्टिसाइड का उपयोग किया जाता है।
- हर्बिसाइड: फसल के बीच से जंगली घास और जड़ों को हटाने के लिए हर्बिसाइड का उपयोग किया जाता है।
चीकू की फसल में रोपण सामग्री के अलावा, कुछ और भी महत्वपूर्ण कदम होते हैं जो फसल के संचालन और संवर्धन में मदद करते हैं। निम्नलिखित हैं चीकू की खेती के अन्य महत्वपूर्ण कदम:
खाद: चीकू की फसल के लिए उपयुक्त खाद उपलब्ध होना आवश्यक होता है। फसल के विकास के लिए उपयुक्त मात्रा में जीवाश्म युक्त खाद देना चाहिए।
कीट-नाशक: फसल की संरक्षण के लिए उपयुक्त कीटनाशक और कीट प्रबंधन के लिए उपयुक्त तकनीकों का उपयोग करना आवश्यक होता है।
जल संचयन और सिंचाई: चीकू की खेती में उचित जल संचयन और सिंचाई बहुत आवश्यक होते हैं। इसे फसल के संचालन और विकास के लिए जरूरी माना जाता है।
फसल की देखभाल: फसल की समय पर देखभाल और प्रबंधन बहुत जरूरी होता है। यह समय पर खेती, उचित खाद, सिंचाई, कीट प्रबंधन आदि के लिए समय लगाने के माध्यम से संभव होता है।
चीकू के पौधों की दूरी प्रत्येक पौधे के लिए अलग-अलग होती है। इसका मुख्य अधिकारी फसल के उत्पादकता को बढ़ाने के लिए दूरी को नियंत्रित करना होता है। एक सामान्य अनुमान है कि चीकू के पौधों की दूरी 6-8 फीट होती है।
लेकिन, प्रत्येक पौधे की दूरी उसकी खेती के उपयोग, बीज का विवरण, वातावरण, और बाग़वानी तकनीक के अनुसार भिन्न होती है।
आमतौर पर, चीकू की बुवाई में दो पौधों के बीच कम से कम 6 फुट की दूरी बनाए रखनी चाहिए। इससे चीकू के पौधों के विकास और फलों की उत्पादकता में सुधार होता है।
गड्ढों को तैयार करने से पहले, आपको ध्यान देना होगा कि आप उन्हें सही अंतराल और गहराई में खोदें। गड्ढों के अंतराल को फसल के विशिष्ट विकास चरणों के आधार पर निर्धारित किया जाना चाहिए। इसके अलावा, आपको भूमि के दर्शक, भूमि के पानी स्तर को देखना चाहिए, ताकि आप उचित ड्रेनेज सिस्टम को निर्मित कर सकें।
चीकू की खेती में गड्ढों को खोदने से पहले, भूमि में अच्छी तरह से खाद और उर्वरक का आवेदन करना चाहिए। इसके लिए, आप विभिन्न उर्वरकों जैसे कि जैविक कंपोस्ट, निम्बू का रस, बैगेसिक सल्फर आदि का उपयोग कर सकते हैं। इसके अलावा, आप अच्छी खाद भी चीकू की उत्पादकता में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। खेती के लिए उपयुक्त खाद फसल की उत्पादकता को बढ़ाती है और फलों की गुणवत्ता को भी बढ़ाती है। चीकू की खेती के लिए उपयुक्त खाद की सूची निम्नलिखित है:
जीवाणु खाद: जीवाणु खाद फसल की विकास और उत्पादकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसमें फसल के लिए जरूरी पोषक तत्व शामिल होते हैं जो फसल को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं।
नाइट्रोजन खाद: नाइट्रोजन खाद फसल की विकास और उत्पादकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह फसल के सबसे अधिक उत्पादक तत्व में से एक होता है।
फोस्फोरस खाद: फोस्फोरस खाद फसल के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह फसल के सबसे अधिक उत्पादक तत्व में से एक होता है। इसे फसल के विकास और उत्पादकता के लिए जरूरी माना जाता है।
- पोटैशियम खाद फसल के लिए महत्वपूर्ण होती है क्योंकि यह पौधों की संरचना और विकास के लिए आवश्यक होता है। पोटैशियम खाद के बिना, पौधों के लिए सही मात्रा में खाद नहीं होती है जो विकास के लिए आवश्यक होती है। पोटैशियम खाद पौधों के स्वस्थ विकास और मुँहासों के विकास के लिए भी महत्वपूर्ण होती है। इससे फल की मात्रा भी बढ़ती है। चीकू की खेती में, उपयुक्त मात्रा में पोटैशियम खाद के साथ-साथ अन्य खाद भी उपयोग में लाना चाहिए।
चीकू बोने की विधि:-
चीकू बोने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन किया जा सकता है:
एक गहराई के साथ गड्ढे खोदें, जो लगभग 60 सेमी गहरा हो। गड्ढों के बीच दूरी 3-4 मीटर रखें।
अब गड्ढों में गोबर की खाद डालें। आप खाद की मात्रा को वर्षण द्वारा नियंत्रित कर सकते हैं।
अब गड्ढों में पानी डालें। आपको उन्हें भरने के लिए प्रति गड्ढे के लिए 30-40 लीटर पानी की आवश्यकता होगी।
अब एक अंतराल के साथ चीकू के पौधों को गड्ढों में लगाएं। एक गड्ढे में दो-तीन पौधे लगाएं।
पौधों को सुखाने से बचने के लिए प्रतिदिन उन्हें पानी दें।
चीकू के पौधों को लगाने के लगभग 6 महीने बाद उन्हें खाद दें।
अब आपको पौधों को नियमित रूप से जलाने, काटने, और खेती से जुड़ी अन्य कामों को करने की आवश्यकता होगी।
पैकेजिंग: चीकू फलों को बिन्दु श्रृंखला में पैकेजिंग करना एक उत्तम विकल्प हो सकता है। यह पैकेजिंग फलों को सुरक्षित रखती है और अधिक से अधिक फलों को एक साथ ले जाने में मदद करती है। पैकेजिंग में कार्टन बॉक्स, प्लास्टिक बैग और जूट बैग शामिल हो सकते हैं।
परिवहन: चीकू फलों को विभिन्न प्रकार के वाहनों का उपयोग करके आसानी से विपणन करना संभव होता है। फलों को ठीक से पैकेज करें ताकि वे सुरक्षित रहें और परिवहन के दौरान किसी भी नुकसान से बचे।
- विपणन: चीकू फलों को विभिन्न विपणन ढंगों से विक्रय किया जा सकता है। अधिकतर चीकू फल स्थानीय बाजारों और सुपरमार्केटों में बेचे जाते हैं, जहां उन्हें उपलब्धता के अनुसार विभिन्न पैकेजिंग में बेचा जाता है। इसके अलावा, ऑनलाइन विपणन वेबसाइटों द्वारा भी चीकू फलों को विक्रय किया जा सकता है।
चीकू फलों को पैकेजिंग करने के लिए आमतौर पर खुले प्लास्टिक या थर्मोकॉल बॉक्स का उपयोग किया जाता है। इन बॉक्सों में चीकू फलों को एक साथ रखा जाता है ताकि वे टूट नहीं जाएं और खराब न हों।
परिवहन के लिए, चीकू फलों को सीधे या बॉक्स में लोड करके ट्रक या ट्रेन से भेजा जा सकता है। जहां तक विपणन की बात है, वह आमतौर पर व्यापारियों, उपभोक्ताओं, बाजारों और सुपरमार्केटों के माध्यम से होता है। विशेष रूप से ऑनलाइन विपणन वेबसाइटों के उपयोग से, चीकू फलों को विभिन्न शहरों और राज्यों में भी ऑनलाइन विपणन वेबसाइटों के उपयोग से आसानी से विक्रय किया जा सकता है। ऑनलाइन विपणन के माध्यम से, चीकू फलों को विभिन्न विभागों और शहरों में दुकानदारों, डीलरों या उपभोक्ताओं तक पहुंचाया जा सकता है। विभिन्न विपणन वेबसाइटों पर चीकू फलों की प्रतिक्रिया, मूल्य और आवश्यक सूचनाएं दी जाती हैं, जो खरीदारों को इस फल के बारे में जानकारी प्राप्त करने में मदद करती हैं।
चीकू के फल उगाने की निचली रेखा क्षेत्र के जलवायु, मौसम और पौधों की विशेषताओं पर निर्भर करती है। उन्नत ज्ञान और वैज्ञानिक तकनीकों के उपयोग से, निचली रेखा को बढ़ाया जा सकता है ताकि फल की उत्पादकता बढ़ सके। निचली रेखा को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित उपाय अनुशरण किए जाने चाहिए:
उचित जलवायु: फलों की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए उचित जलवायु का चयन करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। चीकू के फलों के लिए सबसे उचित जलवायु गर्म और सूखे मौसम के बीच होता है।
उचित पोषण: चीकू के पौधों को उचित पोषण देना भी फलों की उत्पादकता को बढ़ाता है। फलों के विकास के लिए नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम जैसे तत्वों का उचित मात्रा में प्रदान करना चाहिए।
पूर्ण संरचना वाले पौधे: चीकू के फलों की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए, पूर्ण संरचना वाले पौधे उगाए जाने चाहिए। पूर्ण संरचना वाले पौधे उगाने से फलों की उत्पादकता में वृद्धि होती है। इससे पौधों की वृद्धि और फलों की संख्या बढ़ती है। चीकू के पौधों को प्रारंभिक दौर में पूर्ण संरचना वाले पौधों के रूप में उगाया जाना चाहिए, इससे फलों की उत्पादकता में वृद्धि होती है। इसके लिए, पौधों को प्रथम साल में चौड़ा करना चाहिए और उन्हें प्रति वर्ष उच्चतम 6 फीट तक ऊंचा करना चाहिए। यह सुनिश्चित करेगा कि पौधे की पूर्ण संरचना होती है और फलों की उत्पादकता बढ़ती है।